विश्व वन्य जीवन सप्ताह -2015
हम सभी जानते हैं कि अन्य जानवरों के बिना मानव का धरती पर गुज़ारा असंभव है . फिर भी हम वन्य जीवन के महत्त्व के बारे में समझना नहीं चाहते . हमारे लिए उनका गायब होना सिर्फ एक आंकड़ा है, पर सच्चाई काफी कड़वी है .जैसे जैसे जीवों की संख्या धरती से लुप्त हो रही है, वैसे वैसे ही हमारा धरती पर अंतिम समय भी निकट आ रहा है . इस बात को ध्यान में रखते हुए हमने कुछ समय उनके बारे में सोचने का संकल्प लिया एवं विश्व वन्य जीवन सप्ताह मनाया. शायद हम उनके बारे में चिंता ना करने की गलती को महसूस कर सकें . यह कार्यक्रम तीन दिनों तक चला .अक्टूबर का पहला सप्ताह वन्य जीवन सप्ताह के रूप में मनाया गया. हमने एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता रखी थी और विद्यार्थियों ने इसमें हर्षोल्लास से भाग लिया . इसके बाद स्कूल ऑफ़ लाइफ साइंसेज से डॉक्टर सूर्यप्रकाश ने जेएनयु की तितली प्रजाति एवं उनके हमारे जीवन में महत्त्व पर व्याख्यान दिया . इस मौके पर सूखे मौसम में जानवरों के लिए पीने के पानी की समस्या को दूर करने के लिए इ ज़मीनी स्तर की मुहिम अपनाई गयी . कैंपस में चारों तरफ कई पानी के मटके रखे गए . इस मौके पर कई अन्य गतिविधियाँ जैसे चित्रकला, फोटोग्राफी तथा पर्यावरण के विषय पर फिल्म का मंचन किया गया . कुल मिलाकर एक जागरूकता अभियान से वन्य जीवन सप्ताह में वन्य जीव कल्याण की ओर कदम बढ़ाए गए ।
पृथ्वी दिवस
"एक सच्चा संरक्षणकरता वह है जो यह जानता है कि यह धरती उसके बाप दादाओं ने उसे नहीं दी है, बल्कि अपने बच्चों से उधार के रूप में मिली है ." जॉन जेम्स औडॉबॉन
हम्सब्को यह समझना होगा कि हमारी धरती माँ हमें आज जो कुछ भी प्रदान कर रही है, ये हमें हमारे पूर्वजों से विरासत में नहीं मिला है, बल्कि ये हमारी आने वाली पीढ़ी की धरोहर है और सिर्फ हमारी नहीं बल्कि इस धरती पर रहने वाले हर प्राणी की संपत्ति है . पर मानव सभ्यता के लिए हम इसे धरती माँ की परवाह किये बिना ही प्रयोग करते हैं . धरती को माँ क्यों कहा जाता है? क्योंकि यह हमारा शुरुआत से ही माँ की तरह भरण पोषण करती है, हमारी और आपकी ज़रूरतों का ध्यान रखती है, हमारे मुश्किल दिनों में हमें जीने के स्त्रोत मुहैया करवाती है .क्या यही सारे कार्य सारा जीवन हमारी माँ हमारे लिए नहीं करती?
अतः अगर देखा जाए तो क्या हमारी अपनी धरती माँ के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं है? इसके लिए हम पर्यावरण विज्ञान विद्यालय के विद्यार्थियों ने माननीय जयराम रमेश, भूतपूर्व पर्यावरण मंत्री, भारत सरकार एवं अन्य कई पर्यावरणविदों के साथ धरती माँ की देखभाल की विषय वस्तु पर २२ अप्रैल २०१६ को पृथ्वी दिवस मनाया. यह कार्यक्रम उन सारे लोगों के लिए एक सबक था जो प्रकृति द्वारा दी गयी सेवाओं का बिना सोचे समझे दुरुपयोग करते हैं .
इस कार्यक्रम के अंतर्गत कई गतिविधियाँ हुईं जो १६ से २२ अप्रैल तक पूरे हफ्ते चली .
दीया दीपावली
अँधेरे के बीच में रोशनी की एक किरण हमें अपेक्षाओं एवं प्रसन्नता से भर देती है। ऐसा ही होता है जब हम दीवाली का पर्व मनाते हैं एवं हमारे चारों ओर रोशनी का अम्बार हमें ख़ुशी प्रदान करता है। इसकी शुरुआत इसी प्रकार हुई थी, परंतु समय के साथ पटाखों का चलन आया एवं इससे निकले धुएं के कारण वातावरण आलोकित होने के स्थान पर प्रदूषित होने लगा। यह प्रदूषण तथा इसके फलस्वरूप होने वाला अँधेरा ना सिर्फ रोशनी के प्रवेश में बाधा उत्पन्न करता है, बल्कि हमारे लिए भी हानिकारक होता है, क्योंकि पटाखों के धुएं से हवा प्रदूषित हो जाती है। अतः हम पर्यावरण विज्ञान के छात्रों ने दीवाली के दिन पर्यावरण के लिए कुछ करने का विचार किया एवं इसे दीपावली अर्थात दीप+आवली (कतार या रेखाएं) में परिवर्तित किया। यह पर्व ९ नवम्बर से शुरू होकर 11 नवम्बर तक चला।
हमारे लिए आश्चर्य की बात यह रही कि कई लोगों ने इस मुहिम में भाग लेकर इसे सफल बनाया। चित्रों में दर्शित किये गए विचार काफी बेहतरीन एवं रचनात्मक थे। कई विद्यार्थियों एवं शिक्षकों ने इस विचार के सम्बन्ध में सहज रूप से अपनी राय दी तथा भविष्य की गतिविधियों के लिए हमारा सहयोग एवं मार्गदर्शन किया।
इस प्रकार दीवाली मनाने के पीछे हमारा एकमात्र सिद्धांत लोगों का ध्यान पर्यावरण के उस नुकसान की तरफ खींचना था, जो पटाखों के अतिरिक्त प्रयोग से उसे हो रहा है। ये पटाखे ना सिर्फ वायु को प्रदूषित करते हैं बल्कि काफी मात्रा में ध्वनि का भी उत्पादन करते हैं, जिससे जंगली जानवर, छोटे बच्चे तथा बुज़ुर्ग व्यक्ति काफी बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। दीवाली खुशियों का त्यौहार है, अतः आइये डर या घृणा के बदले खुशियों का संचार करें।