कई तरह के विषैले तत्वों के महत्वपूर्ण मनुष्य, पौधों एवं जानवरों की प्रजातियों पर प्रभाव से लेकर मानव अस्तित्व विद्यालय में जनसंख्या तथा जैविक एवं सेलुलर तथा मॉलिक्यूलर स्तर पर अध्ययन का विषय है .ट्यूमर की उत्पत्ति एवं मेटासिस के दौरान सेल मैट्रिक्स इंटरेक्शन का अध्ययन करके एक नए सेल सरफेस रिसेप्टर हयालूरोनन बाइंडिंग प्रोटीन को क्लोन किया गया है . इस क्लोन डीएनए का प्रयोग प्रोग्नोस्टिक ट्यूमर मार्कर कार्सिनोमा के रूप में करने का प्रयास किया जा रहा है . प्रदूषक तत्वों के जैविक परिवर्तन तथा जैवनिम्नीकरण को विष के विकास के साथ जोड़कर देखने के लिए पशु एवं सेल कल्चर प्रणाली पर उपानुकूलतम स्तर पर भारी धातु विषैलेपन एवं रसायन से निर्मित कार्सिनोजेनेसिस का अध्ययन किया जा रहा है . पौधों के वातावरण के प्रदूषक तत्वों के प्रति संवेदनशीलता एवं जैविक प्रणालियों पर युवी विकिरण के प्रभाव पर भी कार्य प्रगति पर है . होस्ट पैरासाइट सम्बन्ध पर भी एंटामीबा हिस्टोलाइटिका को एक प्रतिरूपक के रूप में प्रयोग में लाकर कई शोध कार्य चल रहे हैं . एंटामीबा हिस्टोलाइटिक के डीएनए तत्वों को एपिडेमियोलॉजिकल तथा अमीबियासिस की जांच के रूप में विकसित किया जा रहा है . पारिस्थितिकी कार्य प्रणाली का अवलोकन निजी, जनसंख्या एवं सामाजिक स्तर पर किया जाता है;पारस्परिक सम्बन्ध वाले पारिस्थितिकी (परिदृश्य) को भी संवहनीय परिदृश्य प्रबंधन कार्यनीति के दृष्टिकोण से अवलोकित किया जाता है . इस कार्य में ग्रामीण निम्नीकृत परिदृश्य के पुनरुद्धार की कार्यनीति पर ध्यान दिया जाता है . इन अध्ययनों से पारिस्थितिकी स्थायित्व एवं दृढ़ता की अमझ प्राप्त होती है . पारिस्थितिकी एवं पारिद्रिश्यिक स्तर पर पारिस्थितिकी एवं सामाजिक प्रक्रियाओं को जोड़ना मुख्य चर्चा का विषय होता है . ज़मीन के ऊपर एवं नीचे जैव विविधता प्रबंधन, पारिस्थितिकी एवं पारिद्रिश्यिक स्तर पर मिट्टी की जैविक प्रक्रियाओं की समझ से मिट्टी के उपजाऊपन को बनाए रखने तथा पारंपरिक समाज के संवहनीय जीविकोपार्जन/विकास पर काफी कार्य किये जा चुके हैं एवं काफी प्रगति पर हैं . इनमें से कई अध्ययन वैश्विक परिवर्तन एवं भूमिगत पारिस्थितिकी कार्यप्रणाली के विषयों से जुड़े हुए हैं . इन अध्ययनों का ज़्यादातर कार्य नेटवर्किंग के द्वारा किया गया है, जिसके अंतर्गत युवा वैज्ञानिकों, सरकारी एजेंसियों तथा गैर सरकारी स्वैच्छिक एजेंसियों, जो कि सारे देश में फैले हुए हैं, की मदद ली गयी है . ये अध्ययन, जिनकी शुरुआत राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए की गयी है, गैर सरकारी एवं अंतर्सरकारी संस्थाओं के कई अंतर्राष्ट्रीय शोध कार्यक्रमों का हिस्सा हैं .