स्टॉकहोम विश्वविद्यालय, स्वीडन के साथ सहयोग में आतंरिक एशियाई अध्ययन केंद्र मध्य तथा दक्षिण एशिया में विकास, रक्षा तथा क्षेत्रीय सहयोग पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन कर रहा है: यूरो-एशियाई परिप्रेक्ष्य 13-14 मार्च, 2014
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सेमिनार रिपोर्ट
आतंरिक एशिया की पुनः-कल्पना
मध्य एशियाई क्षेत्र अध्ययन कार्यक्रम, आतंरिक आशियाँ अध्ययन केंद्र, अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विद्यालय, जेएनयू द्वारा 30 सितंबर 2013 को “आतंरिक एशिया की पुनः कल्पना” पर एक छात्र-संकाय सेमिनार आयोजित किया गया था। सेमीनार के संचालक डॉ. महेश रंजन देबता थे। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. गिरिजेश पंत, डीन, एसआईएस, ने की थी, जिन्होंने अपने भाषण में, एक राज्य का विकास करने के संदर्भ में उड़ीसा के खनन श्रमिकों की समस्याओं से शुरू हो कर अरब बसंत तक, वैश्विक समस्याओं के बारे में बात करी। प्रो. के. वारिकू आतंरिक एशियाई अध्ययन केंद्र के बारे में परिचयात्मक भाषण दिया तथा आतंरिक एशिया को प्रभावित करने वाले वैश्विक परिदृश्य के तहत समसामयिक मुद्दों के बारे में बात की थी। आतंरिक एशियाई अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष, प्रो.मोंदिरा दत्ता, ने प्रो. देवेन्द्र कौशिक तथा प्रो। महावीर सिंह सहित सभी अथितियों का स्वागत किया था।
प्रो. एस.के. सोपोरी, कुलपति, जेएनयू, ने उद्घाटन को संबोधन करने के दौरान, शोध अध्ययन में विज्ञान तथा प्रोद्योगिकी के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने मध्य आशियाँ गणराज्यों द्वारा किराये पर भूमि के अधिग्रहण के अध्ययन तथा वह भारत को किस प्रकार से प्रभावित करेगा इस बात पर ज़ोर दिया। प्रो. देवेन्द्र कौशिक ने अपने मुख्य वक्ता के रूप में, आतंरिक एशियाई नामकरण का परिचय, इसका इतिहास जो इस्लाम के आगमन से पहले भी अस्तित्व में था, तथा उन्होंने बहु-सांस्कृतिक विरासत, धर्म तथा इस क्षेत्र में मौजूद बहुवाद के बारे में बात की।
उन्होंने भू-राजनीतिक के नए महान खेल के युद्ध के मैदान के बारे में बताया जिसने इस क्षेत्र को विभिन्न गतिविधियों का एक केंद्र बना दिया है। 2002 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की घोषणा का जिक्र करते हुए, प्रो. कौशिक ने कहा कि, भारत चीन को एक राजनीतिक तथा आर्धिक भागिदार के रूप में मानता है तथा न की अपने दुश्मन के रूप में।” उन्होंने ज़ोर दिया कि मध्य एशिया को हमारी विदेश नीति में पर्याप्त ध्यान दिए जाने की जरूरत है। प्रो. कौशिक ने उन विद्वानों के बारे में बात की जो आतंरिक एशियाई क्षेत्र के बारे में मिथकों का प्रचार कर रहे हैं। चीनी विद्वान्- चु त्सी की पुस्तक “ईस्ट एंड वेस्ट” का हवाला देते हुए, उन्होंने सांस्कृतिक धरोहरों के संदर्भ में चीन के भारतीयकरण के बारे में बातें की। उन्होंने रबिन्द्र नाथ टैगोर का हवाला दिया, जिन्होंने भारतीय चित्रों तथा वास्तुकला को चीनी शिल्प में पाया तथा कहा “ मैंने हर जगह भारत को पाया परंतु पहचान नहीं सकता”। एक बहु-उन्मुख वैश्विक परिदृश्य लाने के लिए प्रो. कौशिक नेभारत, चीन तथा रूस के बीच त्रिकोणीय संबंध का सुझाव दिया तथा कहा कि 21वीं शताब्दी में, विकास तथा शक्ति के संदर्भ में यह यह देश मिलकर सयुक्त राष्ट्र अमेरिका से आगे निकाल सकतें हैं। डॉ. शरद के. सोनी ने शुक्रिया धन्यवाद दिया।
प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. महावीर सिंह, अध्यक्ष, मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान, गौतम बुद्ध नगर विश्वविद्यालय, द्वारा की गयी थी । उन्होंने आज के परिदृश्य में सुरक्षा समस्याओं तथा अमेरिका-नाटो बलों की वापसी के बाद अफगानिस्तान के बारे में बात की। सत्र के छह वक्ता शामिल हुए जिन्होंने ट्रांस-राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों, यूरोपीय संघ के मध्य एशियाई नीति, माइक्रो वित्त पोषण, जल-राजनीति और मंगोलियाई विदेश नीति से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर बात की। मेहा पंत ने आंतकवाद, राज्य भ्रष्टाचार तथा नशीले पदार्थों की तस्करी के अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक एकीकृत क्षेत्रीय द्रष्टिकोण की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। मदन यादव ने बुनियादी सुविधाओं, सुरक्षा, तथा मध्य एशिया मंव क्षेत्रीय स्थिरता के संवर्धन के विकास में यूरोपीय संघ की भूमिका पर बात की। आलोक कुमार उज़्बेकिस्तान में माइक्रो वित्त पोषण के बारे में बात की तथा जोर देकर कहा कि एक छोटे स्तर की वित्त पोषण होने के बावजूद इन पहलों ने उजबेकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए एक बढ़ावा दिया तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया। श्रीनिवास मिश्रा ने मध्य एशिया की हाइड्रो राजनीती का एक विस्तृत अवलोकन दिया। उन्होंने अमू दरिया बेसिन में जल की विशाल क्षमता पर विस्तृत जानकारी प्रदान की तथा कहा कि मध्य एशियाई राज्यों को एक एकीकृत क्षेत्रीय द्रष्टिकोण के साथ उचित आवंटन के लिए जल संबंधित मुद्दों को तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है। मालिनी पी सेठी ने कजाखस्तान में पर्यटन की संभावनाओं की जाँच की जहाँ भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है विशेष रूप से पहुंच और सुविधाएं बढ़ाने के आलोक में। वैशाली कृष्णा ने नयी मंगोलियन विदेश नीति के नए आयामों पर प्रकाश डालते हुए बदलते आर्थिक तथा राजनीतिक परिद्रश्य के लिए अनुकूल द्रष्टिकोण की आवश्यकता पर बात की।
दोपहर के भोजन के बाद के सत्र की अध्यक्षता डॉ अम्बरीष ढाका द्वारा की गयी। इस सत्र में चार दस्तावेज़ी प्रस्तुतकर्ता थे, जिन्होंने अफगानिस्तान, तिब्बत, तथा झिंजियांग पर बात की। गुंजन प्रिया ने बहु-ध्रुवीय भू राजनीती में, आतंरिक एशियाई भूमिका अधिक महत्वपूर्ण बन गयी है, का उल्लेख करते हुए, आतंरिक एशियाई भू राजनीती में अफगानिस्तान के महत्व के बारे में बात की। अलका ने अफगानिस्तान में राजनीतिक अशांति के मूल कारण के रूप में जातीय मुद्दों के बारे में बात की। भारत तथा चीन के बीच बदलते रिश्तों में तिब्बत की भूमिका के बारे में बात करने के दौरान, संजुक्ता महाराणा ने तिब्बती मुद्दों पर भारत के एक मानवीय नजरिए की जरूरत पर जोर दिया। राजेश सिंह ने कजाखस्तान-चीन ऊर्जा सहयोग में एक कारक के रूप में झिंजियांग के महत्व को रेखांकित किया तथा क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ाने की जरूरत को दोहराया। डॉ। अंबरीश ढाका ने मध्य एशिया तथा अग्गानिस्तान के संदर्भ के साथ, जॉन मैकिण्डर के गढ़ सिद्धांत के बारे में बात की तथा अफगानिस्तान में जातीय समस्याओं पर प्रकाश डाला। डॉ. त्सेतन नामग्याल ने धन्यवाद प्रकट किया।
द्वारा तैयार रिपोर्ट
सुश्री गुंजन प्रिया,
अनुसंधान छात्र, आतंरिक एशियाई अध्ययन केंद्र