संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान, ज.ने.वि., नव देहली
एवं
उत्तरप्रदेश भाषा संस्थान, उत्तर प्रदेश
के संयुक्त तत्त्वावधान मे आयोजित
राष्ट्रीय संगोष्ठी
भारतीय भाषा संगम
कार्तिक शुक्लपक्ष अष्टमी से दशमी यावत्, वि. सं. २०७५
(१६ – १८ नवम्बर, २०१८)
भारत अपने भौगोलिक विस्तार में उपमहाद्वीप है लेकिन अपने सांस्कृतिक और ज्ञान वैभव में एक महाद्वीप या महादेश। जैसी विविधवर्णी यहां की संस्कृति रही है वैसे ही यहां की भाषायें भी। कहा जाता है - कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी।
प्राचीनकाल से भारत बहुभाषी क्षेत्र रहा है। भारत के भाषिक यथार्थ का एक तथ्य यह भी है कि यहां भाषाओं से अधिक भाषाओं के नाम है। एक भाषा भिन्न-भिन्न देश-काल में विवर्तित होकर स्वतन्त्र नाम और रूप धारण कर लेती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अब तक २२ भाषाएं आ चुकी हैं और कई अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की प्रक्रिया में है।
भाषा अभिव्यक्ति अथवा सम्प्रेषण का माध्यम ही नहीं अपितु उससे पूर्व ज्ञान और चिन्तन का माध्यम है । इस नाम रूपात्मक जगत् में भाषा के बिना न व्यवहार संभव है और न ही कोई ज्ञान। भारतीय संस्कृति ज्ञानमूलक है और भाषा इसका अपरिहार्य अनुपूरक । ५वीं शताब्दी के महावैयाकरण दार्शनिक भर्तृहरि ने भाषा के सूक्ष्म एवं व्यापक रूप का प्रतिपादन करते हुए लिखा था –
न सोऽस्ति प्रत्ययो लोके य: शब्दानुगमादृते।
अनुविद्धमिव ज्ञानं सर्वं शब्देन भासते ॥ - (वाक्यपदीय, ब्रह्मकाण्ड)
(इस संसार में ऐसा कोई ज्ञान नहीं है, जो शब्द से सम्बद्ध हुए बिना सम्भव हो । समस्त ज्ञान शब्द के साथ तादात्म्य लाभ करके ही भासित/प्रकाशित होता है।)
भारतीय भाषाएं सदैव एक - दूसरे की अनुपूरक रही हैं। संस्कृत-प्राकृत जैसी अवधारणा इसी का प्रमाण है। पारिव्राजक आचार्यों, महात्माओं, भक्त-कवियों, प्रवचनकारों और जनसमुदायों ने भारतीय प्रदेशों के भाषाओं और उनमें विरचित विशाल साहित्य को न केवल सहस्त्राब्दियों तक अक्षुण्ण रखा बल्कि उनके मध्य संवाद की परम्परा को भी जीवन्त बनाये रखा। भारतीय भाषा संगम शीर्षक से प्रस्तावित यह राष्ट्रीय संगोष्ठी भारतीय भाषाओं एवं उनमें रचित कालजयी कृतियों एवं वैचारिक-दार्शनिक साहित्य को समग्रता में समझने और आत्मसात् करने का प्रयास और संकल्प है। भारतीय भाषाओं के संरचनामूलक वैशिष्ट्य, उनकी ऎतिहासिक पृष्टभूमि एवं विकास तथा इन सबमें उपलब्ध साहित्य एवं साहित्येतर कृतियों से परिचित होना हमारा राष्ट्रीय दायित्व है।
अतः इन विविध विषयों को ध्यान में रखते हुए उत्तरप्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ एवं संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नव देहली, ११००६७ के संयुक्त तत्त्वावधान में इस त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (१६ -१८ नवम्बर, २०१८) का आयोजन सम्मेलन केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नव देहली में किया जा रहा है। इस संगोष्ठी में भारत की भाषा, साहित्य, दर्शन, सामाजिक चिन्तन एवं भाषा/प्रौद्योगिकी आदि विषयों पर स्वतन्त्र एवं समानान्तर सत्रों में शोधपत्रों की प्रस्तुति एवं विस्तृत चर्चा होगी। भाषा विश्लेषण की उपलब्ध प्रविधियों- जैसे कि भाषा परिवार (Language Family), संरचनात्मक वैशिष्ट्य (Structural Approaches), रूपगत साम्य (Typological Approaches) से आगे बढ़कर भारत की भाषा चिन्तन परम्परा में उपलब्ध सैद्धान्तिक प्रारूपों की भी प्रासंगिकता पर विचार करना उपादेय होगा ।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में भारतीय भाषाओं के विविध आयामों की चर्चा तत्तद भाषाओं के माध्यम से करने का प्रस्ताव है। अतः आप सभी विद्वानों से अनुरोध है अपने शोधपत्र सारांश (Abstract) को bbhashasangam@gmail.com इस मेल-आई.डी. पर नवम्बर ०७, २०१८ तक प्रेषित करने की कृपा करें जिससे कि संगोष्ठी-पुस्तिका में इन्हें प्रकाशित किया जा सके। आप सबकी प्रतिभागिता एवं सहयोग प्रार्थनीय है।
संगोष्ठी के विषय इस प्रकार है -
- भारतीय भाषा दर्शन ।
- कालजयी रचनाएं (वीरगाथा एवं भक्ति )
- भारतीय भाषाओं का भाषाशास्त्रीय अध्ययन
- भारतीय साहित्य शास्त्र
- भारतीय दर्शन साहित्य
- लोक साहित्य
- भारतीय भाषाओं मे विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी
- भारतीय भाषाओं के अन्तः सम्बन्ध – (परिसम्वाद)
सम्पर्क - डॉ. रजनीश कुमार मिश्र - 9910066499, डॉ. सन्तोष कुमार शुक्ल - 9810317119, अभिषेक कुमार उपाध्याय - 8922942291, विवेक शुक्ल - 7376848722
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